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(संविधान) भारत की संसद,लोकसभा एवं राज्यसभा

भारत की संसद
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संसद भारत का सर्वोच्‍च विधायी निकाय है। भारतीय संसद में राष्‍ट्रपति तथा दो सदन-लोकसभा (लोगों का सदन) एवं राज्‍य सभा (राज्‍यों की परिषद) होते हैं। राष्‍ट्रपति के पास संसद के दोनों में से किसी भी सदन को बुलाने या स्‍थगित करने अथवा लोकसभा को भंग करने की शक्ति है।

●राज्‍य सभा
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राज्‍य सभा की शुरूआत 1919 में देखी जा सकती है जब भारत सरकार अधिनियम, 1919 के अनुसरण में एक द्वितीय सदन का सृजन किया गया जिसका नाम राज्‍य परिषद था। यह राज्‍य परिषद, जिसमें अधिकांशत: नामजद सदस्‍य शामिल थे, सही संघीय विशिष्‍टताओं को प्रतिबिम्बित किए बिना दूसरे सदन का एक विरूपित रूपांतर था। इस परिषद ने भारत के स्‍वतंत्र होने तक कार्य करना जारी रखा। इसके हिन्‍दी नाम राज्‍यसभा को 23 अगस्‍त 1954 को अपनाया गया।
राज्‍य सभा में अधिकाधिक 250 सदस्‍य होंगे – 238 सदस्‍य राज्‍यों तथा संघ राज्‍य क्षेत्रों के प्रतिनिधि होंगे तथा 12 सदस्‍यों को राष्‍ट्रपति द्वारा नामांकित किया जाएगा।
राज्‍य सभा एक स्‍थायी निकाय है तथा इसे भंग नहीं किया जा सकता। तथापि, इसके एक तिहाई सदस्‍य प्रत्‍येक दूसरे वर्ष सेवानिवृत्‍त होते हैं तथा उन्‍हें नए निर्वाचित सदस्‍यों द्वारा प्रतिस्‍थापित किया जाता है। प्रत्‍येक सदस्‍य को छ: वर्ष की अवधि के लिए निर्वाचित किया जाता है।
भारत का उपराष्‍ट्रपति राज्‍य सभा का पदेन सभापति है। यह सदन अपने सदस्‍यों में से एक उप सभापति का चुनाव भी करता है। इसके अतिरिक्‍त, राज्‍य सभा में उप-सभापतियों का एक पैनल होता है। वरिष्‍ठतम मंत्री, जो राज्‍य सभा का सदस्‍य होता है, को प्रधानमंत्री द्वारा सदन के नेता के रूप में नियुक्‍त किया जाता है।

●लोकसभा
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अपनी समस्‍त आधुनिक प्रशाखाओं के साथ भारत में संसदीय संस्‍थाओं की उत्‍पत्ति भारत के ब्रिटिश संबंधों के कारण हुई। 1983 तक, कार्यपालिका से सुभिन्‍न कोई विधायी निकाय नहीं था। 1853 के शासनपत्र अधिनियम में पहली बार 12 सदस्‍यीय विधायी परिषद के रूप में एक प्रकार के विधानमंडल की व्‍यवस्‍था की।
भारतीय स्‍वतंत्रता अधिनियम, 1947 में भारत की संविधानी सभा को एक पूर्ण प्रभुसत्‍तात्‍मक निकाय घोषित किया गया। संविधान का मसौदा तैयार करने वाले निकाय के अतिरिक्‍त इसने देश के अभिशासन के लिए भी पूर्ण शक्तियां अभिगृहीत कर ली। 26 जनवरी 1950 को संविधान के प्रवृत्‍त होने पर संविधानी सभा ने प्रथम लोकसभा, जिसे तब लोगों का सदन कहा जाता था, के 1952 में आम चुनावों के बाद संघटित किए जाने तक अनंतिम संसद के रूप में कार्य किया। हिन्‍दी नाम लोकसभा को 14 मई 1954 को अपनाया गया।
लोकसभा का संघटन सार्वभौम वयस्‍क मताधिक के आधार पर प्रत्‍यक्ष चुनाव द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों से किया जाता है। संविधान में व्‍यवस्‍था है कि सदन की अधिकतम सदस्‍य संख्‍या 552 होगी – 530 सदस्‍य राज्‍यों का प्रतिनिधित्‍व करेंगे, 20 सदस्‍य संघशासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्‍व करेंगे तथा 2 सदस्‍यों को राष्‍ट्रपति द्वारा एंग्‍लो-इण्डियन समुदाय से नामित किया जाएगा। वर्तमान में सदन की सदस्‍य संख्‍या 545 है।
लोकसभा का कार्य काल, यदि इसे भंग न किया जाए, तो इसकी प्रथम बैठक के लिए नियुक्‍त तिथि से पांच वर्ष है। तथापि, जब आपात उद्घोषणा प्रचालनरत हो, तो इस अवधि को संसद द्वारा कानून पारित करके एक समय में अधिकाधिक एक वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है तथा उद्घोषणा के अप्रचालनरत होने के पश्‍चात किसी भी मामले में यह अवधि छ: माह से अधिक नहीं होगी।

लोकसभा और राज्‍यसभा के बीच अंतर
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1. लोक सभा के सदस्‍यों को सीधे पात्र मतदाताओं द्वारा निर्वाचित किया जाता है। राज्‍य सभा के सदस्‍यों को एकल अंतरणीय मत के माध्‍यम से आनुपारित प्रतिनिधित्‍व की प्रणाली के अनुसार राज्‍य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्‍यों द्वारा चुना जाता है।
2. लोक सभा का सामान्‍य कार्यकाल केवल 5 वर्ष है जबकि राज्‍यसभा एक स्‍थायी निकाय है।
3. लोक सभा वह सदन है जिसके प्रति मंत्रिपरिषद सं‍विधान के अंतर्गत उत्‍तरदायी है। धन विधेयक को केवल लोकसभा में पुन: स्‍थापित किया जा सकता है। साथ ही, यह लोक सभा है जो देश के प्रशासन का संचालन करने के लिए धन प्रदान करती है।
4. राज्‍य सभा के पास यह घोषित करने के लिए विशेष शक्तियां है कि राष्‍ट्रीयहित में यह आवश्‍यक तथा समयोचित है कि संसद राज्‍य सूची में किसी मामले के संबंध में कानून बनाए अथवा कानून द्वारा एक या अधिक अखिल भारत सेवाओं का सृजन करे जो संघ तथा राज्‍यों के‍ लिए एक समान हो।
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