"नया किशोर न्याय कानून"
●●●घृणित अपराध जैसे दुष्कर्म और हत्या के मामले में लिप्त 16 वर्ष से 18 वर्ष के किशोरों को अब वयस्क के रूप में देखा जाएगा। नए किशोर न्याय अधिनियम के तहत ही अब इन्हें सजा होगी।
विस्तार से :-
- महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय के मुताबिक नए कानून के तहत 16 से 18 साल के लोगों को अब किशोर कानून के तहत संरक्षण नहीं मिलेगा। अब उन्हें घृणित अपराधों के लिए सजा मिलेगी।
- इससे पहले किशोर कानून के तहत दुष्कर्म जैसे संगीन जुर्म के आरोपियों के मामले भी जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के अधीन ही देखे जाते थे।
- दोषी पाए जाने पर ऐसे मुजरिमों को बाल सुधार गृह में अधिकतम तीन साल के लिए ही रखा जाता था। नए कानून के तहत जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड मामले की जांच में देखता है कि क्या आरोपी उस घृणित अपराध का वाकई दोषी है।
- जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को यह अधिकार हासिल है कि प्रारंभिक जांच में ऐसे "बच्चे" के दोषी पाए जाने पर वह मामले को बाल अदालत के सुपुर्द कर सकती है।
- संशोधित कानून के तहत दोषी पाए जाने पर या सुनवाई के दौरान उस बच्चे को 21 साल का होने तक बाल सुधार गृह में रखा जाएगा। उसके बाद जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड की समीक्षा के बाद उसे शेष सजा सामान्य जेल में काटनी होगी।
-सुधार की अवस्था में उसे पहले ही छोड़ दिया जाएगा। संशोधित कानून में कुछ नई परिभाषाएं जोड़ी गई है, जिसमें अनाथ, अकेला और आत्मसमर्पण करने वाला बच्चा शामिल है।
-नए कानून में किशोर शब्द को नकारात्मक प्रवृत्ति से बचाने के लिए उसकी जगह बच्चे शब्द का इस्तेमाल किया गया है। नए कानून में गंभीर अपराध और घृणित अपराध को भी परिभाषित किया गया है।
- उल्लेखनीय है कि किशोर न्याय (बाल संरक्षण) बिल को शीत सत्र में राज्यसभा ने पारित किया था। इसके बाद 4 जनवरी को राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी दी थी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें